वो पागल औरत

कुछ समय पहले की बात है,

मोहल्ले में एक पागल औरत

चर्चा का विषय बनी हुई थी।

मैं भी दो दिनों से सुन रही थी।

एक जवान, ख़ूबसुरत पागल

औरत मोहल्ले में घूम रही है।

लेकिन उसे देखना नहीं हो

पाया था।  नाश्ते के बाद मैं

क़रीब 10 बजे छत पे टहल

रही थी। तभी कुछ शोर सुनाई

दिया; झाँक कर देखा तो एक

गंदी सी दिखने वाली पागल औरत

सामने वाले घर के देहरी पर बैठी

हुई थी।

मैं तजस्सुस् के साथ देखने लगी।

देखा एक लड़का, जिसकी उम्र

होगी 28- 30 के बीच।  उस

औरत पे जोर जोर से चिल्ला रहा

था, और उसे वहाँ से जाने के लिए

कह रहा था।

हाथ में एक छड़ी भी ली हुई थी

उसने, शायद उसे डराने के लिए।

वो जिस तरह से छड़ी से उसे

इशारे करते हुए भगा रहा था,

मुझे आभास हुआ जैसे किसी

औरत को नहीं जानवर को

हरका रहा है । आस- पास

खड़े लोग चुप- चाप तमाशा

देख रहे थे। मैं भी चुप- चाप

तमाशा देख रही थी। वो लड़का

उस औरत के डर से उठ कर

चले जाने के बाद, शान से

मुस्कुरा रहा था । ऐसा लग रहा

था जैसे कोई जंग जीत गया हो।

मेरी आँखें भींगने लगीं थी उस

पागल औरत के बारे में सोच कर।

दिल की बहुत अजीब सी कैफ़ियत

हो रही थी।  मेरे ज़हन से वो

पागल औरत निकल ही नहीं रही

थी। एक हफ़्ते तक उसके बारे में

सोचती रही। इसी दौरान महसूस

हुआ, मैं कितनी बड़ी ड्रामेबाज़

हूँ, मेरे आँसू झूठे हैं। मैं उसके लिए

कुछ कर नहीं सकती, कुछ किया

ही नहीं, तो फिर दिल में दर्द और

आँखों में आँसू लिए क्यों घूम

रही हूँ। मैं भी दूसरों की तरह

एक तमाशबीन ही हूँ।

F. Saaz

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