ज़िंदगी के सवालों में उलझोगे तो
खुद ही उलझ जाओगे, सवालों को
नज़र-अंदाज़ कर क़दम अपने बढ़ाते जाओ,
सवाल के जवाब भी मिलेंगे, मंज़िल भी
गले लगाएगी।
तुम जो बोलते हो, जो सोचते हो, जो चाहते हो,
यक़ीनन हासिल कर सकते हो, कोई शक नहीं,
बशर्ते कि अपनी बातों पर, अपने वादे पर
ठहरना आता हो तुम्हें।
ऐसी ज़िंदगी किस काम जब सिर्फ खुद के स्वार्थ के लिए ही सोचो, खुद की कामयाबी के लिए ही सोचो,
बात तो तब बने जब खुद के साथ, औरों के लिए भी
कामयाबी का रास्ता बनाते चलो।
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